माले: मालदीव में आज राष्ट्रपति चुनाव है और भारत में जी20 सम्मेलन के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन चुनावों के परिणामों की फिक्र जरूर होगी। भले ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत नहीं आए हों लेकिन उन्हें भी यह जानने में दिलचस्पी होगी कि आखिर देश का राष्ट्रपति कौन बनेगा। इन चुनावों के नतीजों को भारत और चीन दोनों पर ही असर पड़ने वाला है। अगर राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह जीतते हैं तो चीन परेशान होगा और अगर चीन समर्थक मोहम्मद मुइज को जीत मिलती है तो भारत के लिए परेशानी बढ़ेगी। मुइज, चीन समर्थक है और उनके जीतने से हिंद महासागर पर भारत की मौजूदगी प्रभावित होगी।तो हट जाएंगे भारतीय सैनिकमालदीव में राष्ट्रपति चुनाव के लिए शनिवार को मतदान शुरू हो गया है। राष्ट्रपति सोलिह पर प्रतिद्वंदी मोहम्मद मुइज ने भारत को देश में अनियंत्रित उपस्थिति की मंजूरी देने का आरोप लगाया है। मुइज ने वादा किया कि अगर वह राष्ट्रपति पद जीत गए तो वह मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों को हटा देंगे। साथ ही देश के व्यापार संबंधों को संतुलित करेंगे। उनका कहना है कि यह स्थिति काफी हद तक भारत के पक्ष में है। मालदीव, भारत का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। भारत से 2000 किलोमीटर दूर मालदीव की जनसंख्या सिर्फ 520,000 है। यह पिछले कई दशकों से भारत का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साथी रहा है।शनिवार को होने वाले चुनावों के बाद यह समीकरण बदल सकते हैं। मालदीव पिछले कई सालों ने ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति को मानता आया है। साथ ही कई प्रमुख मुद्दों पर भारत का शीर्ष भागीदार है। लेकिन मुइज की वजह से भारत का प्रभाव देश में विवादास्पद हो गया है। इस बार चुनावों में भारत सबसे अहम मुद्दा बना हुआ है। भारत और चीन दोनों ने ही प्रभाव पैदा करने के मकसद से मालदीव में इनफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के तौर पर लाखों डॉलर का निवेश किया है।हिंद महासागर पर पड़ेगा असरभारत कई दशकों से हिंद महासागर में सबसे प्रभावशाली शक्ति रहा है। व्यापार पर मालदीव जैसे रणनीतिक रूप से स्थित द्वीप देशों के साथ मिलकर काम करने से भारत का प्रभाव क्षेत्र में सुरक्षित रहेगा। भारत ने मालदीव तटरक्षक बल को रक्षा उपकरण जैसे सर्विलांस एयरक्राफ्ट उपहार में दिए हैं। साथ ही इसने मालदीव के रक्षा बलों को उपहार में दिए गए डोर्नियर विमान का उपयोग करने के लिए सैनिकों को ट्रेनिंग देने में मदद करने के लिए अपने सैनिकों को तैनात किया है। मालदीव सहयोग पर निर्भर है।क्यों जरूरी है मालदीवदूसरी ओर तटीय रक्षा और निगरानी के लिए श्रीलंका, चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति को देखते हुए भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। चीन ने भी हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है। इससे भारत के पारंपरिक प्रभुत्व को चुनौती मिलने का खतरा है। इन सभी कारणों से, भारत मालदीव की राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी रहा है। भारत वह पहला देश था जिसने सन् 1965 में मालदीव को मान्यता दी। सन् 1988 में, भारत ने तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को उखाड़ फेंकने के लिए हुए तख्तापलट को रोकने के लिए देश में सेना भेजी थी। भारत ने सन् 2008 में भी देश में लोकतंत्र परिवर्तन का समर्थन किया।मुइज जीते तो हावी होगा चीनइन सबके बावजूद मालदीव के राजनेताओं के एक वर्ग को भारत की मौजूदगी खलती है। मुइज तो मालदीव प्रोग्रेसिव पार्टी (एमपीपी) से उम्मीदवार हैं उन्हें भारत पर गहरा संदेह है। वह पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के करीबी भी हैं। यामीन के साल 2013-2018 तक के कार्यकाल में पारंपरिक रूप से मजबूत भारत-मालदीव संबंधों में तनाव बढ़ गया था। भारत यामीन की सत्तावादी शासन शैली का भी आलोचक था।पूर्व राष्ट्रपति यामीन ने चली थी चालयामीन ने चीन को तस्वीर में लाने के लिए भारत से दूर जाने की कोशिश की। उनकी सरकार में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर मालदीव ने साइन किया था। यामीन के कार्यकाल में मालदीव पर चीनी कर्ज में भी बेतहाशा इजाफा हुआ था। उनके नेतृत्व में ही मालदीव चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा बन गया था। लेकिन साल 2018 में सोलिह के चुनाव जीतने के बाद से मालदीव अपनी पारंपरिक भारत-केंद्रित विदेश नीति पर लौट आया। साल 2020 में यामीन की पार्टी ने ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाया था।