CK Nayudu: आजादी से पहले भारत के ऐतिहासिक टेस्ट की कहानी, जब राजा-महाराजाओं ने कर दी थी टीम से बगावत – team india and independence day ck nayudu first indian cricket captain

नई दिल्ली: अंग्रेजों से लंबी लड़ाई के बाद हमें 1947 में आजादी मिली। अंग्रेज तो चले गए, लेकिन क्रिकेट छोड़ गए। इस खेल के मैदान पर भी हमने खूब जंगे लड़ीं। कुछ जीते-कुछ हारे। और हारते-जीतते, जीतते-हारते कई योद्धओं को कीर्ति की प्राप्ति हुई। आज हम उस योद्धा की बात करेंगे, जिसे क्रिकेट के मैदान पर सबसे पहली बार हमारा सेनापति बनने का मान मिला। यानी टीम इंडिया के पहले कप्तान कर्नल सीके नायडू। लेकिन सीके नायडू के बारे में जानने से पहले भारत में क्रिकेट की शुरुआत कैसे हुई ये जानना जरूरी है। जानना जरूरी है कि कैसे अंग्रेज ही हमारी टीम सिलेक्ट करते थे। ये भी जानना जरूरी है कि टीम इंडिया में कैसे रियासतों की, राजा-महाराजाओं की, राज परिवारों की दखलअंदाजी होती थी। अच्छे प्लेयर्स के साथ कैसे भेदभाव होता था।मुंबई का जिमखाना और अंग्रेज इम्प्रेसयूं तो 1889 से 1902 करे बीच इंग्लैंड की टीम तीन टीमें भारत आईं, लेकिन तब गुलाम भारत में हम इस खेल का ककहरा ही सीख रहे थे। मसलन बल्ला कैसे पकड़ा जाता है। गेंद की ग्रिप क्या होती है। दूसरों शब्दों में ये देश में क्रिकेट का शैशवकाल था। असल पहचान मिली साल 1926 में। बॉम्बे के जिमखाना में हिंदुओं की ओर से खेलते हुए कर्नल सीके नायडू ने जब 116 मिनट में 156 रन कूट दिए। 11 छक्के और 14 चौके शामिल थे। और सिर्फ नायडू ही नहीं बल्कि देवधर, रामजी और गोडम्बे ने अपने खेल की ऐसी छाप छोड़ी कि अंग्रेज भी मान गए कि नेशनल खेल में भारत उनको बराबरी की टक्कर दे सकता है।भारत को 1932 में मिला टेस्ट दर्जाइसी के बाद भारत को पहली बार 1932 में टेस्ट दर्जा मिला। अब गोरों को भरोसा हो चुका था कि हम काले भी टेस्ट क्रिकेट के लायक हैं। 1932 में भारत पहली बार क्रिकेट खेलने विदेश गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि टीम इंडिया का सिलेक्शन ब्रिटिश चयनकर्ताओं ने किया। चयनकर्ता अच्छे स्तर का काउंटी क्रिकेट खेले हुए लोग थे। तब भारत में क्रिकेट राजघरानों और उनके सगे-संबंधी ही खेला करते थे। या वो जो क्रिकेट के जरिए रियासतों में नौकरी पाना चाहते थे। या वो जो राजा-महाराजा जो अंग्रेजों से दोस्ती बढ़ाना चाहते थे। उनके करीब आना चाहते थे।राजाओं ने छोड़ी कप्तानी, तब मिली जिम्मेदारीगुलामी का जमाना था इसलिए टीम का कप्तान किसी राजा-महाराजा या नवाब को ही बनाया जाता। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि टीम में कम से कम आधा दर्जन खिलाड़ी तो रियासतों के शाही लोग या उनके दोस्त-यार होते। 1932 में भी भारत के पहले विदेशी दौरे पर इन्हीं बातों का ध्यान रखा गया। महाराजा पटियाला कप्तान बनाए गए, लेकिन जब महाराजा पटियाला ने इनकार कर दिया तो कमान पोरबंदर के राजा राणा साहब को सौंपी गई। उनके करीबी रिश्तेदार घनश्याम सिंह जी को उपकप्तानी मिली।रातों-रात टीम में बगावतये जानते हुए भी कि सीके नायडू इस टीम के सबसे अनुभवी औऱ बेस्ट प्लेयर हैं, उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। किसी को उनकी याद नहीं आई। ये मैच लॉर्ड्स में होने वाला था। भारत एक ऐतिहासिक मैदान से अपने टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत कर रहा था, ऐसे में इस हिस्टोरिकल मूमेंट को ध्यान में रखते हुए राणा साहब और घनश्याम सिंह जी ने टीम से हटने का एक शानदार फैसला किया। उन्हें क्षमताओं के बारे में पता था और कप्तानी सीके नायडू को सौंप दी। मगर टीम के दूसरे राजा-महाराजा किसी आम आदमी की कप्तानी में नहीं खेलना चाहते थे, इसलिए मैच से एक दिन पहले बगावत कर दी। इंडिया में महाराजा ऑफ पटियाला को फोन लगाया गया, लेकिन तब भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ता रहे महाराजा पटियाला ने साफ कर दिया कि कप्तानी नायडू ही करेंगे, जिन्हें इनकार हैं वह कभी भारत के लिए क्रिकेट नहीं खेलेगा। इस तरह कर्नल सीके नायडू की कप्तानी में भारत ने अपने टेस्ट सफर की शुरुआत की।इंडियन क्रिकेट के पहले सुपरस्टारइस मैच में भले ही भारत 158 रन से हारा, लेकिन इस हार ने नींव के पत्थर का काम किया। कर्नल सीकू नायडू होलकर आर्मी के सेनापति होने के साथ-साथ बेहद स्टाइलिश बल्लेबाज थे। वो भारतीय क्रिकेट के पहले सुपरहीरो थे। 1915 में उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलना शुरू किया और अगले 45-50 साल तक भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को रोमांचित किया। उनके नाम 207 प्रथम श्रेणी मुकाबलों में 11825 रन दर्ज है जबकि सात टेस्ट मैच में वह 350 रन बना पाए।Opinion: रोम-रोम में भरा एटीट्यूड, सिर पर चढ़ी IPL की कामयाबी, हार्दिक पंड्या की मनमानी ने टीम इंडिया को डुबो दिया