नई दिल्लीक्रिकेट इतिहास के चार सबसे महान बल्लेबाजों में डब्ल्यू जी ग्रेस, जैक होब्स, वॉली हैमंड और सर डॉन ब्रैडमैन का नाम जाता है। क्रिकेट के कई पंडितों का मानना है कि बाकी उनके करीब आ सकते हैं लेकिन इनकी जगह नहीं ले सकते। खैर, यह अलग चर्चा का विषय है। पर आज बात वॉल्टर हेमंड यानी वॉली हेमंड की। दुनिया के ऑल टाइम ग्रेट बल्लेबाजों की जब भी सूची बनेगी इंग्लैंड के इस खिलाड़ी का नाम जरूर आएगा। आज ही के दिन यानी 19 जून के साल 1903 में उनका जन्म हुआ था। हैमंड को कहा जाता है कि उन्होंने जो सीखा खुद सीखा। वह न सिर्फ कमाल के बल्लेबाज थे बल्कि बहुत अच्छे स्लिप फील्डर भी थे। हेमंड ने अपने करियर की शुरुआत में ही दिखा दिया था कि उनमें दम है। 1928 में वह विजडन के क्रिकेटर ऑफ द ईयर थे। हेमंड ने जो शुरुआती रंग दिखाया उसके अपने करियर में कायम रखा। हैमंड जब पांच साल के थे तो वह हॉन्ग-कॉन्ग में थे। यहां उनके पिता की पोस्टिंग थी जो ब्रिटिश सेना में एक छोटे अधिकारी थे। बाद में वह सेना में मेजर के पद पर पहुंचे। 11 साल की उम्र में वह परिवार के साथ माल्टा में थे। यहां वह सैनिकों के बच्चों के साथ क्रिकेट खेला करते थे। यहां क्रिकेट का बल्ला सही नहीं था तो हैमंड और उनके दोस्तों ने लंबे हैंडल और छोटे ब्लैड वाला बल्ला बनाया। यहां उन्हें समझ में आया कि बल्लेबाज को गेंद को हिट करना पड़ता है न कि थपथपाना। जब वह इंग्लैंड पहुंचे तो साल 1914 था। दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने को था। वह स्कूल में पढ़ने पहुंचे। 1920 में स्कूल से निकलन के बाद वह काउंटी क्रिकेट खेल रहे थे। ग्लॉस्टरशर के लिए। शुरुआती दो या तीन मैच वह अमैच्योर के रूप में खेले। हैमंड में प्रतिभा थी। लोग इसे देख रहे थे। उनके पहले मैच के बाद ही उन्हें केंट की ओर से खेलने का न्योता मिला। बर्थ क्वॉलिफिकेशन के आधार पर इंग्लिश काउंटी ने उन्हें खेलने के योग्य माना। हालांकि हैमंड ने इससे इनकार कर दिया। दूसरी ओर ग्लॉस्टरशर के लिए उनके खेलने की पात्रता पर सवाल थे। नतीजा, दो साल के लिए उन्हें फर्स्ट क्लास क्रिकेट से बैन कर दिया गया। हैमंड को ऐसा क्रिकेटर माना जाता है जिन्होंने सब कुछ खुद सीखा। हालांकि स्कूल जाने से पहले तक उन्होंने कोई खास ट्रेनिंग नहीं ली थी। लेकिन वहां भी एक मुकाबले में 365 रन बनाकर उन्होंने दिखा गया कि वह क्रिकेट का भविष्य हैं। 1928-29 के सीजन में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने कमाल की बल्लेबाज की। इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थी। हैमंड ने इस सीरीज में 251, 200, 32, 119 नॉट आउट और 177 रन बनाए। इसके बाद 1932-33 के न्यूजीलैंड दौरे पर 227 और 336 नॉट आउट बनाए। इस सीरीज में उनकी औसत 563 की रही। जो एक सीरीज में अब भी रेकॉर्ड है। हैमंड न सिर्फ बड़े रन बनाते थे बल्कि लगातार बनाते थे। उन्होंने पांच बार टेस्ट मैच में लगातार दो शतक लगाए। टेस्ट क्रिकेट में उनके नाम सात दोहरे शतक हैं। जो इंग्लैंड के लिए अब भी सबसे ज्यादा हैं। टेस्ट क्रिकेट में उन्होंने 85 मैचों में 58.45 के औसत से 7249 रन बनाए। इसमें 22 शतक और 24 अर्धशतक शामिल हैं। वहीं फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 634 मुकाबलों में 56.10 के औसत से 50551 रन उनके बल्ले से निकले। इसमें 167 शतक और 185 अर्धशतक थे। दमदार स्लिप फील्डरहैमंड कमाल के स्लिप फील्डर थे। कुछ की नजर में क्रिकेट इतिहास के सबसे शानदार स्लिप फील्डर्स में से एक। रेकॉर्ड इस ओर इशारा भी करते हैं। स्लिप में उनके नाम 110 कैच हैं। अपने क्रिकेट करियर के मध्य में भी उनका फुटवर्क किसी युवा की तरह था। वह पिच पर तीन-चार गज आसानी से बाहर आते और गेंद की पिच पर पहुंचकर उसे खेलते। उनके बल्ले का बहाव भी सटीक होता। गेंद को अपनी पसंद की जगह पर, अपनी पसंद की ताकत से हिट करते। वह बहुत अच्छे मीडियम पेसर भी थे। सर डॉन ने एक बार उनके बारे में कहा था, ‘वह रन बनाने में इतना मशगूल था कि उसने अपनी गेंदबाजी के बारे में विचार ही नहीं किया।’ गेंदबाजी की बात करें तो 85 टेस्ट मैचों में उन्होंने 83 विकेट लिए और फर्स्ट क्लास मैचों में उनके नाम 732 विकेट थे।