नई दिल्लीशुक्रवार की सुबह धूल परिवार के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आई। घर के नौनिहाल ने कमाल किया था। बचपन में क्रिकेटर बनने का सपना संजोए बेटा अब भारतीय टीम का कप्तान बनाया जा चुका था। यूएई में अंडर-19 एशिया कप खेला जाना है, जिसके लिए बीसीसीआई ने टीम घोषित की तो सबसे ऊपर दिल्ली के जनकपुरी के यश धूल का नाम था। कोहली-पंत के क्लब में एंट्रीविराट कोहली, ऋषभ पंत के बाद यश जूनियर क्रिकेट में भारतीय टीम की कप्तानी करने वाले नई पीढ़ी के क्रिकेटर हैं। मध्यक्रम के आक्रामक बल्लेबाज यश अपनी इस कामयाबी पर कहते हैं कि अभी तो जस्ट स्टार्ट ही कर रहा हूं। अंडर-16 के दिनों से दिल्ली की कमान संभाले यश की सफलता में पिता की तपस्या भी नजर आती है।एशिया कप के लिए टीम इंडिया का ऐलान, सातवीं बार चैंपियन बनने उतरेगा यंगिस्तानपिता ने छोड़ दी जॉबपिता विजय धूल बताते हैं, ‘अगर दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए आप अपने बेटे को क्रिकेटर बनाना चाहते हैं तो त्याग करना होगा। यश के लिए मैंने अपना काम छोड़ दिया। वह फोकस कर सके, उसके सपनों को पूरा करने के लिए मैं पूरा समय दे सकूं इसलिए अब सिर्फ पार्टटाइम जॉब ही करता हूं। दरअसल, यश भारत के उसी मिडिल क्लास परिवार की नुमाइंदगी करते हैं, जो ‘थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है’, वाले फलसफे पर चलते हैं।दादा के पेंशन से चलता है घरघर की माली हालात बहुत अच्छी नहीं है। भारतीय सेना में रह चुके दादा के पेंशन पर परिवार पर पलता है। खुद यश बताते हैं कि बचपन से तंगी देखी। पिता बोलते हैं बेटे को अच्छी किट मिले। अच्छे बल्ले मिले इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गई। हमने घर का खर्चा कमकर यश की प्रैक्टिस पर फोकस किया। यश दिनभर टीवी या फोन पर सिर्फ क्रिकेट मैच देखते हैं। उनका कोई रोल मॉडल नहीं है, लेकिन हर इंटरनेशनल प्लेयर को अपना हीरो मानते हैं। मां ने पहचाना था टैलेंटयूंही नहीं कहा जाता कि मां सबसे पहली गुरु होती है। सिर्फ पिता की ही नहीं बल्कि मां का भी यश के करियर में बड़ा योगदान है। चार साल के छोटे से बच्चे में क्रिकेट की समझ सबसे पहले उन्होंने ही देखी। पास के ही क्रिकेट क्ल्ब में ट्रेनिंग शुरू हुई। 12 साल की उम्र में यश दिल्ली अंडर-14 टीम में थे। अंडर-16 टूर्नामेंट में पंजाब के खिलाफ 185 रन की नाबाद पारी ने उन्हें असल पहचान दिलाई।लॉकडाउन में पिता बने कोचकोरोना महामारी के चलते देशभर में लगे लॉकडाउन से यश की प्रैक्टिस भी प्रभावित हुई। तब पिता विजय ने घर की छत पर ही नेट्स का बंदोबस्त किया। अपनी देखरेख में कोचिंग शुरू करवाई। वीडियो बनाकर कोच राजेश नागर से शेयर करते। गलतियां समझते और फिर अपने बेटे से दुरुस्त करवाते। दरअसल, यश को एकेडमी से लाने ले जाने के दौरान वह प्रैक्टिस देखा करते थे। वहीं कोचिंग के बेसिक्स भी सीख गए।